10 हज़ार कमरों वाले इस होटल में क्या हुआ था। colossus of prora Germany की पूरी कहानी

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10 हज़ार कमरों वाले इस होटल में क्या हुआ था। colossus of prora Germany की पूरी कहानी


आपने आज तक बहोत बड़े बड़े होटलों के बारे में सुना होगा या कभी न कभी किसी होटल में रुके होंगे, हर होटल में आने वाले मेहमानो के लिए होटल की रेटिंग के हिसाब से सुविधाएं होती हैं, 

जैसे की 3 स्टार, 5 star और 7 star इन के हिसाब से ही इन होटलों में आने वालों से अच्छी खासी कीमत भी वसूली जाती है, यह तो हुई उन होटलों की बात जिनका सही समय पर उद्धघाटन हो सका, और जिनके मालिकों की किस्मत अच्छी थी, 

अब मैं आप लोगों को बताने जा रहा हूँ उस होटल के बारे में जिसकी किस्मत इतनी अच्छी नहीं थी, अगर इस होटल का उद्धघाटन सही समय पर हो जाता तो आज इसको बनाने वालो की बात ही कुछ और होती, 

और इस होटल में एक रात रुकने का किराया भी इतना ज़्यादा होता की हर किसी के बस की बात नहीं होती, 


10 हज़ार कमरों वाले इस होटल का नाम  colossus of prora है |

इस होटल को बनाने के लिए 9 हज़ार मज़दूरों ने 3 साल तक दिन रात का किये थे, इस होटल को जर्मनी बाल्टिक सागर के रूगेन दिप पर हिटलर के आदेश पर बनाया गया था, बताया जाता है की नाजी वास्तुविद clemens klotz ने अडोल्फ हिटलर के आदेश पर साल 1930 में इस होटल का डिज़ाइन तैयार किया था, 

उस समय second world war की शुरुआत तो नहीं हुई थी लेकिन जर्मनी के लोगों में नाजी सेना का खौफ बनने लगा था, इसी लिए हिटलर ने रूगेन आइलैंड पर एक हॉलिडे कैंप बनवाने का फैसला किया, 

लगभग 5 किलोमीटर के दायरे में फैले इस आइलैंड पर होटल बनाने का ज़िम्मा नाजी संस्था kraft durch freude ने लिया। 

इस होटल को बनवाने के पीछे हिटलर का सबसे बड़ा मकसद था की जर्मन लोग जिनमे खास कर हिटलर के सैनिक काम के बाद मौज मस्ती और अय्याशी कर सकें, इस होटल को परोरा नाम दिया गया जिसका मतलब होता है बंजर ज़मीन, 

ये नाम इस होटल पर ऐसा असर कर गया की, कभी इस होटल की किसी भी कमरे में कोई सुकून की नीन्द नहीं सो सका, अपने नाम की तरह ये होटल हमेशा बंजर ज़मीन की तरह वीरान ही रहा। 

इस होटल को समुन्द्र के बीच रेतीली ज़मीन पर बनाने का काम बड़े पैमाने पर शुरू हुआ था, लगभग 9 हज़ार मज़दूर दिन रात काम में जुटे रहे, साल 136से 1939 के बीच 3 साल तक लगतरार काम चलता रहा, इस काम में 237.5  मिलियन जर्मन करेंसी खर्च हो गयी,

इस होटल में 8 हाउसिंग ब्लॉक, थिएटर बनकर तैयार हो गए थे, स्वीमिंगपूल और फेस्टिवल हॉल का काम शुरू ही होने वाला था तभी  second world war शुरू हो गई, जिसकी वजह से होटल बनाने का काम बंद कर दिया गया, और सभी मज़दूरों को सेना में भर्ती कर लड़ाई में भेज दिया गया, इसके बाद इस होटल को बनाने काम कभी शुरू नहीं किया जा सका, 


होटल की अधबनी इमारतों का इस्तेमाल सैनिकों ने बैरक के तौर पर किया, 

पहले सोवियत आर्मी के सैनिक यहाँ पर छुपे थे, जिनके बाद नेशनल पीपलस आर्मी, और उनके बाद unifide armforce  of germany के सैनिकों ने इसे बैरक के तौर पर इस्तेमाल किया, 

बमबारी के दौरान सैनिकों के इलावा यहाँ आम नागरिक भी आ कर अपनी जान बचाने की कोशिश करते थे, लगातार होती बमबारी की वजह से यह चमचमाती ईमारत टूट फुट कर खंडहर में बदलने लगी, 

कई साल बाद हिटलर के सपने के इस होटल को बेचने का काम शुरू हुआ लेकिन इस होटल का कभी सौदा नहीं हो सका, हर बार किसी वजह से डील कैंसिल होती गई, 


कई लोगों का ऐसा भी मन्ना है की second world war के समय यहाँ भी बहोत लोगों की जाने गई थीं, इसी लिए इस होटल पर बुरा साया हो सकता है। 

आखरी बार साल 2004 में इस होटल को कई भाग में बांटकर इस के अलग अलग हिस्सों को बेचा जाने लगा। 

हर हिस्से के खरीदार ने अपने हिस्से का अलग इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। 

यह होटल पुरे 10 हज़ार कमरों का होने के बाद भी कभी 10 लोगों का ख़ुशी से स्वागत नहीं कर सका। 

इस होटल के बाइक हुए एक बड़े हिस्से में दुनिया का सबसे बड़ा हॉस्टल ज़रूर बन गया है जिसे लोग block iv  के नाम से जानते हैं, 


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