इतिहास में की गई सबसे भयानक शोध जिसे कहा जाता है Russian Sleep Experiment | The most terrible research done in history is called Russian Sleep Experiment |

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इतिहास में की गई सबसे भयानक शोध जिसे कहा जाता है Russian Sleep Experiment | The most terrible research done in history is called Russian Sleep Experiment |

क्या आप ने कभी यह सोचा है की कोई भी इंसान बिना सोए कितना दिन ज़िंदा रह सकता है ?

अगर कोई इंसान बिना सोए लगातार जागने की कोशिश करे तो उसके शरीर पर किस तरह का असर होगा |

ऐसा ही एक शोध (Experiment) रूस में किया गया था, जो बहोत ही खौफनाक और बुरा साबित हुआ, 

आज मैं आप लोगों को उस घटना के बारे में बताने वाला हूँ जिसे Russian Sleep Experiment कहा जाता है, 

इसे इतिहास में हुए इंसानो पर सबसे खतरनाक Experiment में से एक माना जाता है, 


कई सालों से इसके बारे में इंटरनेट के हर फॉर्म पर बहस होती रही है, यह कैसा Experiment था और सच्चाई से इसका कितना रिश्ता है आज आप सब कुछ जानोगे। 

Russian Sleep Experiment के बारे में सबसे पहले Creepypasta नाम की एक वेबसाइट पर बताया गया था, दरअसल इस वेबसाइट पर लोग अपनी ज़िन्दगी में हुए अजीबो गरीब घटनाओ के बारे में दुनिया को बताते है, और साथ ही कई लोग इतिहास में हो चुकी घटनाओ के बारे में भी यहाँ पर लिखते हैं, 

Russian Sleep Experiment के बारे में सबसे पहले  10 अगस्त 2010 में Creepypasta वेबसाइट पर बताया गया था, 

इस घटना के बारे में बताने वाले का यूजर नेम ऑरेंज सोडा था लेकिन दुनिया को आज तक इस का असली नाम नहीं पता चल सका, 


अब जानते है Russian Sleep Experiment की वो दिल दहला देने वाली घटना के बारे में, 

रूस में साल 1940 के समय इस खतरनाक Experiment को किया गया था, 

असल में यह Experiment यह जानने के लिए किया गया था की कोई भी इंसान बिना सोए कितने दिनों तक ज़िंदा रह सकता है और इससे उस इंसान के शरीर पर कैसे बदलाव होंगे, 

यह Experiment करने के लिए 5 कैदियों को चुना गया था इन सभी 5 कैदियों को वर्ल्ड वॉर से पकड़ा गया था, 

इन कैदियों को यह देखने के लिए एक चेंबर में रखा जाना था की यह लोग बिना सोए 30 दिन तक ज़िंदा रह सकते हैं या नहीं,

इस काम के लिए इन कैदियों से झूट बोला गया था की अगर यह लोग या इनमे से जो भी 30 दिनों तक बिना सोए ज़िंदा बच गया तो उसे आज़ाद कर दिया जाएगा, 

इन कैदियों को एक चेम्बर में बंद कर दिया गया , उस समय CCTC Camera तो नहीं था इस लिए उस चेम्बर में एक खिड़की की तरह कांच लगा दिया गया था जिसके ज़रिये वैज्ञानिक इन कैदियों की हर हरकत पर नज़र रखते थे, 

और इनकी बातों को Electronically Monitar किया जाता था, 

कहीं यह लोग सो न जाए इस के लिए इसा चेम्बर में एक ऐसी गैस छोड़ी गई जिसकी वजह से यह कैदी सो नहीं सकते थे, 

यह गैस काफी ज़हरीली थी इस लिए इस बात का काफी ख्याल रखा गया था की ज़्यादा गैस अंदर न चली जाए जिससे किसी कैदी की मौत न हो जाए, इस चेंबर में बहोत सारी किताबों को रखा गया था ताकि कैदी किताबें पढ़ कर समय बिता सके, 

कैदियों के लेटने और बैठने के लिए ज़मीन पर चटाई की जगह जानवरों की खालों को बिछाया गया था, और किनके खाने पीने के लिए कई चीज़ों को रखा गया था साथ ही अंदर एक बाथरूम भी बनाया गया था, 


शुरू के  5 दिनों तक तो सब कुछ ठीक चल रहा था, शुरू के 5 दिनों तक यह कैदी अपनी ज़िन्दगी में हु चुके वाक्यों को एक दूसरे को सुना कर समय बिताते रहे, लेकिन पांचवें दिन इनकी आवाज़ में अजीब से गुस्सा भरना शुरू हो गया, 

5 दिनों के बाद यह कैदी आपस में बात करना काम कर दिए, और चेंबर में लगे मिक्रोफोने में हलकी हलकी आवाज़ में कुछ कहना शुरू कर दिए, 

इसी दौरान इनमे से एक कैदी ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने लगा और चेम्बर के अंदर यहाँ वहां भागने लगा, यह कैदी लगातार 3 घंटे तक इतनी ज़ोर से चिल्लाता रहा की आखिर में इसका गला ही फट गया जिसकी वजह से अब यह कुछ बोल नहीं सकता था, लेकिन हैरानी की बात यह थी की इस कैदी के चीखने चिल्लाने का बाकी किसी भी कैदी पर कोई असर नहीं हुआ वो सभी कोने में आराम से बैठ कर इसे देखते रहे और पहले की तरह मिक्रोफोने में हलकी सी आवाज़ में कुछ कहते रहे, 

लेकिन कुछ ही समय बाद एक और कैदी उठा और वह भी ज़ोर ज़ोर से चीखने चिल्लाने लगा, अब यह दोनों चीखने वाले कैदी कमरों में राखी किताबों को फाड़ने लगे और किताबों के पन्नो को कमरे में लगे शीशे पर लगाने लगे जहाँ से इनपर नज़र रखी जा रही थी ताकि बाहेर के लोग इन्हे ना देख सके, एक बात तो बिलकुल साफ़ हो चुकी थी की अब यह कैदी Normal नहीं तेल अब यह सब पागल होने लगे थे, 

धीरे धीरे इनकी आवाज़ आना बंद हो चुकी थी, 

वैज्ञानिक इन्हे नहीं देख पा रहे थे क्यों की कैदियों ने शीशे पर कागज़ लगा दिए थे,

वैज्ञानिको को लगा की ये सब मर चुके हैं या मरने वाले हैं, यह देखने के लिए कुछ सैनिकों को चेम्बर के अंदर भेजा गया,

जब सैनिक अंदर गए तो सैनिकों ने देखा की यह सब अभी भी साँसे ले रहे हैं और ज़िंदा है, पर इनमे से कोई भी उठ नहीं सकता था, यह सब ज़मीन पर बेसुध पड़े हुए थे, सैनिकों ने शीशे पर लगे सभी कागज़ हटा दिए जिसके बाद सभी सैनिक वापस चले गए,


हैरानी की बात यह तो थी की शीशे पर लगे कागज़ को हटाने के बाद 3 दिन तक इनपर कोई नज़र नहीं रखी गई, 

जब 3 दिन के बाद इन्हे देखा गया तो चेंबर के अंदर का माहौल बहोत ही खौफनाक था, अंदर मौजूद सभी कैदी बहोत बुरी तरह घायल थे, यह सभी कैदी एक दूसरे पर जानलेवा हमला कर रहे थे, यह कैदी एक दूसरे को नोच कर खाना शुरू कर दिए थे, 

इतना खौफनाक नज़ारा देखने के बाद इन सभी को बाहेर निकलने का फैसला किया जाने लगा,


लेकिन सबसे हैरानी की बात तो तब हुई जब इनमे से एक कैदी की आवाज़ आई जो बोल रहा था अब हमें बाहेर नहीं निकलना है, दरअसल अब इनमे से कोई भी कैदी बाहेर निकलना नहीं चाहता था, 

जब सैनिकों ने इन कैदियों को बाहेर निकलने की कोशिश की तब वह सभी कैदी भाग कर फिर उसी चेंबर में जाने की कोशिश करने लगे,

इन सभी कैदियों की दिमागी हालत को देखते हुए इन्हे गोली मार दी गई, और इस चेंबर को हमेशा के लिए बंद कर दिया गया ताकि यह घटना कभी दुनिया के सामने न आ सके, लेकिन यह कहानी दुनिया के सामने कैसे आई आज तक कोई नहीं जान सका, सबसे हैरानी की बात तो यह है की साल 1940 में होने वाली यह घटना साल 2010 में ही क्यों सामने आई, और वह भी Creespypasta जैसी वेबसाइट पर जहाँ पर मौजूद किसी भी कहानी का कोई असल source पता लगाना काफी मुश्किल हो जाता है की यह कहानी सच है या बस मनघडत, 


सबसे अहम् बात, आज के समय इस घटना के बारे में इंटरनेट पर बहोत सारी जानकारिया साझा की गई हैं, यूट्यूब पर इस Experiment पर कई वीडियो भी मौजूद है, मैं खुद खुल कर यह नहीं कह सकता की यह Experiment सच में हुआ था या नहीं, क्यों की मुझे भी इसमें कुछ कमी लग रही है, लेकिन दुनिया में ऐसे लाखों लोग है जो मानते हैं की ऐसा सच में हुआ है, 


आप को इस बारे में क्या लगता है अपनी राय कमेंट में ज़रूर दें,

जानकारी अच्छी लगी हो तो सभी के साथ शेयर ज़रूर करिए, 

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