भारत मे बैंकों की शुरुआत
भारत के आधुनिक बैंकिंग की शुरुआत ब्रिटिश राज में हुई। 19 वीं शताब्दी के शुरुआत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने 3 बैंकों की शुरुआत की -
2) बैंक ऑफ बॉम्बे १८४० में
3) बैंक ऑफ मद्रास १८४३ में।
लेकिन बाद में इन तीनों बैंको को ख़त्म करके एक नये बैंक 'इंपीरियल बैंक' में कर दिया गया जिसे सन १९५५ में 'भारतीय स्टेट बैंक' में बदल दिया गया।
🔷 इलाहाबाद बैंक भारत का पहला निजी बैंक था। भारतीय रिजर्व बैंक सन १९३५ में स्थापित किया गया था और बाद में
1) पंजाब नेशनल बैंक,
2) बैंक ऑफ़ इंडिया,
3) केनरा बैंक
4) इंडियन बैंक स्थापित हुए।
भारत में प्रारम्भ में बैंकों की शाखायें और उनका कारोबार वाणिज्यिक केन्द्रों तक ही सीमित होती थी। बैंक अपनी सेवायें केवल वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों को ही उपलब्ध कराते थे। स्वतन्त्रता से पूर्व देश के केन्द्रीय बैंक के रूप में भारतीय रिजर्व बैंक ही सक्रिय था।
जबकि सबसे प्रमुख बैंक इम्पीरियल बैंक ऑफ इण्डिया था। उस समय भारत में तीन तरह के बैंक कार्यरत थे -
➡️ भारतीय अनुसूचित बैंक,
➡️ गैर अनुसूचित बैंक
➡️ विदेशी अनुसूचित बैंक।
भारत में बैंकों का राष्ट्रीयकरण
भारतीय रिजर्व बैंक का राष्ट्रीयकरण स्वतन्त्रता के उपरान्त सन् 1949 में किया गया। इसके कुछ वर्षों के उपरान्त सन् 1955 ई. में इंम्पीरियल बैंक ऑफ इण्डिया का भी राष्ट्रीयकरण किया गया और उसका नाम बदल कर भारतीय स्टेट बैंक रखा गया। आगे चलकर सन् 1959 ई. में भारतीय स्टेट बैंक अधिनियम बनाकर आठ क्षेत्रीय बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया। वर्तमान में ये आठों बैंक भारतीय स्टेट बैंक समूह के बैंक कहे जाते हैं।
इन आठों बैंकों के नाम -
✔️ स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद,
✔️ स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर एण्ड जयपुर,
✔️ स्टेट बैंक ऑफ इन्दौर,
✔️ स्टेट बैंक ऑफ मैसूर,
✔️ स्टेट बैंक ऑफ ट्रावणकोर के आलावा और भी है...
✔️ देशभर में इनकी लगभग 15,000 शाखायें हैं।
देश के प्रमुख चौदह बैंकों का राष्ट्रीयकरण 19 जुलाई सन् 1969 ई. को किया गया। ये सभी वाणिज्यिक बैंक थे। इसी तरह 15 अप्रैल सन 1980 को निजी क्षेत्र के 6: और बैंक राष्ट्रीयकृत किये गये। इन सभी बीस बैंकों की शाखायें देशभर में फैली हैं।
(वर्तमान में कुल १९ राष्ट्रीयकृत बैंक हैं)
निजी व सहकारी क्षेत्र के बैंक
भारतीय रिजर्व बैंक ने जनवरी, सन् 1993 ई. में तेरह नये घरेलू बैंकों को बैंकिंग गतिविधियां शुरू करने की परमिशन दी। इनमें प्रमुख हैं
🔷यू.टी.आई.,
🔷इण्डस इण्डिया,
🔷आई.सी.आई.सी.आई,
🔷ग्लोबल ट्रस्ट,
🔷एचडीएफसी,
🔷आई.डी.बी.आई,
देशी बैंकों के साथ अमेरिकी, यूरोपीय तथा एशियायी देशों की बैंकें भी भारत में अपनी शाखायें खोलकर कारोबार कर रही हैं। इनकी शाखायें महानगरों तथा प्रमुख शहरों तक ही सीमित हैं। देश में ग्रामीण बैंकों का बड़ा संजाल फैलाया गया है। देश में लघु बैंकिंग कारोबार में इन ग्रामीण बैंकों की बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है।
भारत में बैंकिग क्षेत्र में समय-समय पर सुधार किए जाते रहे हैं। इसके लिए सरकार ने समय-समय पर कई समितियां बनाई जिनकी रिपोर्ट में उन 14 बड़े व्यापारिक बैंको को राष्ट्रीयकरण किया गया जिनके पास 60 करोड़ रुपये थे तथा 1980 में उन 6 बैंकों को राष्ट्रीयकरण किया गया जिनके पास 200 करोड़ रुपये थे। उसके बाद भारत में बैंकों का महत्व और बढ़ा तथा इन बैंकों की शाखाएं ग्रामीण क्षेत्रों में भी खोली गई। सन् 1991 में इन बैंकों में सुधार की आवश्यकता महसूस की गई। इसके लिए भारत सरकार ने अगस्त 1991 में श्री एम. नरसिंहम की अध्यक्षता में एक समिति नियुक्त की तथा बाद में सन् 1998 में भी बैंकिग प्रणाली सुधार कमेटी इन्हीं की अध्यक्षता में नियुक्त की गई। वित्तीय प्रणाली की समीक्षा के लिए एम. नरसिंहम ने 1991 में निम्नलिखित सिफारिशें की-
➡️1. इस समिति ने तरलता अनुपात में कमी करने की सिफारिश की जिसमें कानूनी तरलता अनुपात (SLR) को अगले पांच वर्षों में 38.5 प्रतिशत से कम करके 28 प्रतिशत कर देने की सिफारिश की।
➡️2. इस समिति ने निर्देशित ऋण कार्यक्रमों को समाप्त करने की सिफारिश की।
➡️3. इस समिति के अनुसार ब्याज दरों का निर्धारण बाजार की शक्तियों के द्वारा होना चाहिए। ब्याज दरों के निर्धारण में रिजर्व बैंक का हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए।
➡️4. इस समिति ने बैकों की लेखा प्रणाली में भी सुधार करने की बात की।
➡️5. इस समिति ने बैकों के ऋणों की समय पर वसूली के लिए विशेष ट्रिब्यूनल की स्थापना पर जोर दिया।
➡️6. नरसिंहम समिति ने बैंकों के पुनर्निर्माण के ऊपर भी जोर दिया। इस समिति के अनुसार 3 या 4 अन्तर्राष्ट्रीय बैंक, 8 या 10 राष्ट्रीय बैंक तथा कुछ स्थानीय बैंक एवं कुछ ग्रामीण बैंक एक देश के अन्दर होने चाहिए।
➡️7. इस समिति ने शाखा लाइसेंसिंग की समाप्ति की सिफारिश की।
➡️8. नरसिंहम समिति ने विदेशी बैंकिग को भी अपने देश में प्रोत्साहित करने की सिफारिश की।
➡️9. इस समिति ने बैंकों पर दोहरे नियंत्रण को समाप्त करने की सिफारिश की।
✔️ पहले बैंकों पर वित्त मंत्रालय तथा रिजर्व बैंक का नियंत्रण होता था। नरसिंहम कमेटी ने सुझाया कि बैंकों पर केवल रिजर्व बैंक का नियंत्रण होना चाहिए।
1998 में गठित नरसिंहम समिति की प्रमुख सिफारिशें नीचे दी गई हैः
🏦 1. सुदृढ़ वाणिज्यिक बैंकों आपस में विलय अधिकतम आर्थिक और वाणिज्यिक माहौल पैदा करेगा और इससे उद्योगों का विकास होगा।
🏦 2. सुदृढ़ वाणिज्यिक बैकों का विलय कमजोर वाणिज्यिक बैकों के साथ नहीं किया जाना चाहिए।
🏦 3. देश के बड़े बैंकों को अन्तर्राष्ट्रीय स्वरूप प्रदान किया जाना चाहिए।
🏦 4. जोखिम भरी आस्तियों से पूंजी के अनुपात को सन् 2000 तक 9 प्रतिशत तथा सन् 2002 तक 10 प्रतिशत के स्तर पर लाया जाना चाहिए।
🏦 5. सरकारी प्रतिभूतियों द्वारा कवर किए गए असुविधाजनक हो चुके ऋणों को गैर निष्पादनीय अस्ति माना जाए।
🏦 6. रुपये 2,00,000 लाख से कम के ऋणों पर ब्याज नियंत्रण का अधिकार बैंकों को दिया जाए।
भारत में बैंकिंग बहुत सुविधाजनक और परेशानी मुक्त है। कोई भी व्यक्ति,आसानी से लेनदेन की प्रक्रिया कर सकता हैं,
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