ख़तरनाक निशानेबाज, हिटलर भी घबराता था इस लड़की से | Dangerous shooter, Hitler was also afraid of this girl,

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ख़तरनाक निशानेबाज, हिटलर भी घबराता था इस लड़की से | Dangerous shooter, Hitler was also afraid of this girl,

हिटलर इतिहास का वो काला नाम है जिसे ही हिल्टर के बारे में जानने वालों के दिलो दिमाग उसके सनकीपन की कहानियां और उसके जुल्मों को याद कर के अब भी सहम जाते है | 

लेकिन उसी दौर में एक ऐसी लड़की थी जिससे खुद हिटलर और उसकी पूरी सेना घबराती थी,
इस लड़की ने हिटलर की सेना की नाक में दम कर रखा था,
इस लड़की को इतिहास की सबसे ख़तरनाक निशानेबाज भी माना जाता है,

इस लड़की का नाम है 
"ल्यूडमिला पावलिचेंको" (Lyudmila Pavlichenko)

सिर्फ 25 साल की उम्र में ही ल्यूडमिला ने 309 लोगों को अपना शिकार बना लिया था,
उन 309 लोगों में ज़्यादातर हिटलर के सैनिक ही थे,

ल्यूडमिला का बचपन
14 साल की उम्र में ल्यूडमिला का पाला हथियारों से पड़ा,
वह अपने परिवार के साथ यूक्रेन से किव आ कर बस गई,

हैनरी साकोड़ा की किताब 
हिरोईन ऑफ़ द सोवियत यूनियन (Heroin of the Soviet Union) के मुताबिक़ ल्यूडमिला एक हथियार बनाने की फैक्टरी में काम करती थी,
तभी उसने फैसला किया कि वह ओसोआवियाजीम शूटिंग एसोसिएशन ने दाखिला लगी, जहां उसे हथियार चलाना सिखाया जाए,

ल्यूडमिला ने बताया कि जब उसके पड़ोस में रहने वाला एक लड़का उसके सामने शूटिंग करके शेखी बघार रहा था तभी उसने ठान लिया कि एक लड़की भी ऐसा कर सकती है, दाखिला के कुछ ही दिनों में हथियार चलाना सीख लिया,

22 जून 1941 में जर्मनी ने जर्मन सोवियत के बीच हमला न करने के समझौते को तोड़ दिया,
और ऑपरेशन बारबरोसा शुरू कर दिया,
इस ऑपरेशन के तहेत जर्मनी ने सोवियत संघ पर हमला कर दिया, 
ल्यूडमिला ने देशबकी रक्षा के लिए अपनी पढ़ाई छोड़ कर आर्मी में जाने का फैसला किया,
आर्मी में उन्हे लेने से इंकार कर दिया गया था,
जब उसने अपनी निशानेबाजी का हुनर दिखाया तो उसे आर्मी मे एंट्री मिल गई,

आर्मी में शामिल होते ही उसे ग्रीस और माल्दोवा कि लड़ाइयों मे भेज दिया गया,
युद्ध के पहले 75 दिनों में ही उसने आर्मी मे अपनी खास जगह बना ली, और इसी बीच उसने हिटलर की बाज़ी सेना के 187 सैनिकों को मार गिराया,
ल्यूडमिला की जबर्दस्त निशानेबाजी को देख कर हिटलर की नाज़ी सेना घबराने लगी,
ल्यूडमिला का नाम सुनते ही कई नाज़ी सैनिक कांप जाते थे,

आज के यूक्रेन के साउथ में बसे आडेसा के युद्ध में खुद को साबित करने के बाद उसे सेवास्टोपोल के युद्ध में भेजा गया,

सेवास्टॉपोल के युद्ध में ल्यूडमिला को बहुत चोटें आई, पर फिर भी ल्यूडमिला ने मैदान नहीं छोड़ा,
आखिर नाज़ी सेना ने उनकी पोजिशन पर बम से हमला कर दिया, जिससे ल्यूडमिला के चेहरे पर भी गंभीर चोटें आई, बहुत सारी कामयाबी मिलने के बाद ल्यूडमिला को आर्मी लेफ्टिनेंट की पद मिली, जिसके बाद उसने दूसरे जवानों को निशानेबाजी को ट्रेनिंग देना शुरू कर दिया,

1945 से 1953 के बीच ल्यूडमिला ने सोवियत नौसेना के मुख्यालय के साथ काम किया, उसके बाद वह सोवियत कमेटी ऑफ वॉर वेटरनस की अहम सदस्य बन गई,
ल्यूडमिला उन 2000 बंदूकधारियो में से थी जो रेड आर्मी के साथ Second World War में लड़ी और उन 500 में से थीं जो युद्ध में ज़िंदा बच गए,

युद्ध के दौरान लगे ज़ख्म पूरी तरह ठीक नहीं हुए, जो ल्यूडमिला को समय समय पर तकलीफ देते रहते थे
10 अक्टूबर 1974 में 58 साल की उम्र में उनकी मौत हो गई,

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