छत्रपति शिवाजी महाराज का मुसलमानों से संबंध रोचक जानकारी

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छत्रपति शिवाजी महाराज का मुसलमानों से संबंध रोचक जानकारी



शुरू उनके दादाजी से किया जाए।शिवाजी के पितामह मालव जी असल मे अहमदनगर के निजाम के सिपहसालार थे। जीवन भर निजाम के वफादार रहे, कई लड़ाइयां जीती। मालवजी एक पीर बाबा के बड़े भक्त थे। उन बाबाजी का नाम था "शाह शरीफ"

मालवजी के दो बेटे हुए। एक का नाम था "शाह जी", दूसरे का "शरीफ जी" .. । शिवाजी स्वयं शाह जी के बेटे थे। जब मालवजी कि मृत्य हुई, उनकी मजार एलोरा में स्थापित हुई।।हालांकि इसके इस्लामी स्थापत्य को इग्नोर करें, तो इसे समाधि कहने में हर्ज नही है। इस विषय पर द प्रिंट ने एक लेख हाल में लिखा था। 

शाहजी खुद भी अहमदनगर और हैदराबाद के निजामों की सेवा में रहे,ये इस्लामिस्ट राज थे, जैसा नाम से जाहिर है। शिवाजी खुद एक सूफी पीर के भक्त थे, जिनका नाम याकूत बाबा हुआ करता था। पर बात केवल इतनी नही थी। 

उनके तोपखाने का प्रभारी इब्राहिम खान था। उनकी नेवी, जो तटीय इलाकों में फैले उनके किलों की सुरक्षा के लिए एक बड़ी खतरनाक और इन्नोवेटिव फ़ौज थी, वह दौलत खान के जिम्मे थी। सैयद हिलाल उनकी फ़ौज के बड़े सरदार थे। शिवाजी महाराज की तकरीबन डेढ़ लाख की फौज में 66000 मुस्लिम फौजी थे।  

काजी हैदर उनके विश्वस्त मंत्री, सचिव और दूत हुआ करते थे। मदारी मेहतर उनका निजी सेवक था, तो सैयद इब्राहिम उनका खास बॉडीगार्ड। असल मे इब्राहिम ही वो शख्स था, जिसने अफजल खान से मिलने के वक्त उन्हें बघनखा छुपाकर ले जाने की सलाह की थी। जाहिर है, उसकी सलाह मानकर ही शिवाजी छत्रपति होने के लिए जीवित रह सके।

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