क्या मुसलमानो के राज में हिंदू होली का त्योहार मनाते थे ?

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क्या मुसलमानो के राज में हिंदू होली का त्योहार मनाते थे ?

आज जिस तरह हमारे देश भारत मे हिंदू और मुसलमानो के बीच नफरत बांटी जा रही है | जिस तरह हम लोगों को एक दूसरे के खिलाफ भड़काया और लड़ाया जाता है | क्या आप ने कभी ये सोचा है की हम हमेशा से ऐसे ही हैं या पिछले कुछ दशकों से हम में ये बदलाव आया है | क्या हमारे प्यारे भारत देश में हमेशा से हिंदू मुस्लिम में भेदभाव था या यह सब कुछ गंदे लोगों की राजनीति से शुरू हुआ है ? 
अगर आप सोचते हो की मुगल काल में भी ऐसी ही नफरत थी तो आप गलत सोचते हो |
क्यों की इतिहास कुछ और ही बयान करता है |

अक़बर से लेकर बहादुरशाह ज़फ़र तक मुग़ल बादशाहों ने होली का त्योहार बड़े धूमधाम से मनाया करते थे। मुग़लकाल में होली को ईद-ए-गुलाबी कहा जाता था।

लाल क़िला में होली की खास तैयारियां की जाती थीं। बहादुरशाह ज़फ़र के वक़्त शज़ादे और शहजादियां लाल किले के अंदर होली खेलते और बाहर हो रही होली का झरोखों से लुत्फ उठाती थीं। किले से लेकर राजघाट तक खूब भीड़ जुटती। स्वांग करने वालों के झुंड शाहजहांबाद में जगह-जगह घूमते और दरबारियों और अमीरों के घरों में जाकर उनका मनोरंजन करते जिससे इन कलाकारों को ख़ूब इनाम मिलता था।

होली का शाही जश्न कई दिन तक चलता गरीब से गरीब भी बादशाह पर रंग फेंक सकता था। मुग़ल बादशाह बहादुरशाह ज़फ़र का लिखा लोक गीत आज भी होली में गया जाता है

क्यों मोपे मारी रंग की पिचकारी
देख कुंवरजी दूंगी गारी

भाज सकूं मैं कैसे मोसो भाजो नहीं जात
थांडे अब देखूं मैं बाको कौन जो सम्मुख आत

बहुत दिनन में हाथ लगे हो कैसे जाने देऊं
आज मैं फगवा ता सौ कान्हा फेंटा पकड़ कर लेऊं

शोख रंग ऐसी ढीठ लंगर से कौन खेले होरी
मुख बंदे और हाथ मरोरे करके वह बरजोरी

यह देश हमारा है हम सबका है इसे बचाने की जिम्मेदारी भी हमारी है, एक दूसरे से प्यार करे एक दूसरे के धर्मों का आस्थाओं का सम्मान करे यही असल देशभक्ति है |

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